नई दिल्ली. मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में दिहाड़ी मजदूरों के अच्छे दिन आने की उम्मीद है। बजट से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ हुई बैठक में मजदूरों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि और मनरेगा के तहत काम के समय को दोगुना करने की मांग की गई है। इस पर जुलाई में पेश होने वाले बजट में फैसला हो सकता है। बजट से पहले विभिन्न व्यापारिक और श्रमिक संगठनों ने 24 जून को वित्त मंत्री के साथ प्री-बजट मीटिंग की, जिसमें इन मांगों को उठाया गया।
संगठनों ने न्यूनतम वेतन को 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 26 हजार रुपये करने की मांग की है। महंगाई और जीवन यापन की बढ़ती लागत को देखते हुए यह आवश्यक है। साथ ही, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम के दिनों को बढ़ाने की भी मांग की गई है। वर्तमान में, मनरेगा में साल में 100 दिनों का रोजगार मिलता है। इसे बढ़ाकर 200 दिन करने का प्रस्ताव है, जिससे दिहाड़ी मजदूरों को अधिक काम के अवसर मिल सकें। इस कदम से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और वे अधिक स्थायित्व पा सकेंगे।
स्थायी होंगे आशा और आंगनवाड़ी कर्मी
विभिन्न संगठनों ने कई योजनाओं के तहत कार्यरत कर्मियों को स्थायी करने की मांग की है। इसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता और पैरा टीचर्स भी शामिल हैं। इन कर्मियों को स्थायी करने के साथ ही पेंशन देने का भी सुझाव दिया गया है। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के लिए फंडिंग बढ़ाने की मांग भी की गई है। संगठनों का कहना है कि इन उपायों से कर्मचारियों की स्थिरता और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
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